पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुर्थ सर्ग ५६ आँसू से मीच रहा है, जीवन का पादप कोर्ट पत्तियाँ मनोरथ की ये सिहरी है धोई-धोई, जीवन-ऋतुओ को हिय ने पावसमय बना दिया सब आशाश्रो को इस ने क्या ही अनमना किया है ? जब देखो तो बादल-सा उमडा-घुमडा रहता जव देखो, दम बेचारा उखडा-उखडा ६० • वेदना-अथक पनिहारिनि, है आह लचीली रसरी, हिय गहर गभीर कुंआ है, नयन छलकती गगरी, है "स्मृति रस्सी का फन्दा, सकल्प बना घट-भबभब, श्वासारोहण अवरोहण है घट का खिचना जब-तब, भर-भर कर ढरकाती है वेदना नयन-गगरी को, पकिल कर-कर देती लघु आशा की डगरी को ।