पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३८८

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ऊम्मिला if g hê नैराश्य-कुहू 1 विस्तीर्ण प्रतीक्षा पथ ये समय-क्षण रजकण छाई आशका पवन कम्पित विश्वास-लकुटिया, है लगन दीप की बाती, आशा-यात्रिणी अकेली, छिन-छिन कॅपती, अकुलाती , मग जोह रही है कब से प्यासी ऑखे अकुलानी, अन्तज्वाला बह निकली हो कर के पानी-पानी । ६२ क्या ही विचित्र कौतुक यह- अगारो से जल टपके, पत्थर से पानी निकले, पानी मे लपटे लपके, मॅडराते हुए धुंए मे देता कोई पानी, वह अलख वेदना-दानी करता हैं यो मन-मानी , ऑसू, विरोध-छाया तत्त्व-रूपये मानो, दा भूक पुकारो के है अपनत्त्व-रूप ये मानो । ३५४