पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३९

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प्रथम सर्ग ५ तरल, तरमित चिकुर-जाल यह कोमल और अमल है, तन्तुवाय सूत्र-जाल सा अतिशय मृदुल, चपल है, किसने एक-एक कुन्तल की यह बारीकी पेखी ? ज्यामितिज्ञ की मन कल्पना-रेखा जिस ने देखी । ६ पास-पास विष्टरासीन जब ये दोनो होती है- शुक्ति सम्पुटो मे तब भासित होते दो मोती है , किवा जनक-भवन मे नभ से मिथुन राशि हो, अथवा दामिनि की दो किरणे पास-पास छाई हो। ७ जब दोनो वेणिया परस्पर, उडकर, 'जुट पाती है-- तब कृष्णा यमुना की गुथ दो धाराये जाती है, या दो कुहा निशाये करती आलिगन लुब्धा हो,- या दो परछॉही है भुज भर भेट रही मुग्धा हो । सौम्य ललाट-शुभ्रता मे है शुचिता खेल रही यो- श्वेत कमल मे अमल धवलता रह-रह खेल रही ज्यो, भाल देश के ऊर्ध्व भाग मे केश-वर्तुला-रेखा- शोभित है ज्यो सान्ध्य-क्षितिज में अन्धकार की लेखा। जब ललाट पर अलकावलियाँ उड-उडकर आती है- आँख मिचौनी तब केशो मे मानो छिड जाती है , केश-पुज-वेष्टित ललाट ये यो शोभित होते है- ज्यो विहाग के स्वर ऊषा की गोदी मे सोते है । २५