पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३९१

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चतुर्थ सर्ग है अश्रु-तत्व प्रजनन का, है अश्रु-सार ससृति का, है अश्रु-नार विधना की इस मोहनमाला कृति का, व्यक्ति में व्यक्ति गुम्फित कर- इस जल की तरल लडी मे,- सामूहिकता उपजाई वैयक्तिक कडी-कडी मे, करुणा विगलित धारा के- धागे मे गुंथा सकल जग, नयनो मे सिक्त हुआ है, कॅकरीला जीवन का मग । कितनी ही विरह-स्मृतियाँ है गुथी अश्रु-लडियो मे, उमडी अनेक चिन्ताएँ इन रोदन' की घडियो मे, है गुथे वेदना-मोती आँसू की तरल लडी मे, ज्यो उलझा हो हिय-कम्पन सकरुण सगीत-कडी मे, हिय की सब सचित करुणा नित झरती ही रहती है, अनजाने लोचन-पथ में कुछ डरती-सी बहती है । ३७७