पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३९८

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ऊम्मिला बीणा, तार ताँत बाजे, > रहते ? सरगी, यह बाँस्रिया धुनवाली, ये के यह मुद मृदग गुणवाली श्वामोत्प्राणित मृदु स्वर ये, अगुलि-प्रहार-मय यह लय, ये सब देते है नित अमित व्यथा का परिचय, यह विश्व-वेदना क्यो है ? क्यो है यह चिन्तन-पीडा ? ओ लीलामय, तुम यो क्यो करते हो करुणा-क्रीडा ८२ V सुख की गहराई में भी शाश्वत दुख की झलक है, आनन्द मुदित नयनो में Vचिर निरानन्द अपलक है , दुख ही दुख लहराता है सुख के अस्थिर यितल मे, बड़वानल मॅडराता है कल्लोलित क्षुब्ध अतल में , सगीत-लहर से जग मे करुणा उमडी है, रोदन कपन से झकृत गायन की कडी-कडी है ।