पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४००

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म्मिला नूपुर के रुन-भुन-भुन मे, गायन मे, स्वर-साधन मे,- आतुरता-पुलकित तन मे,- निष्ठुर प्रिय-आराधन मन मे, हृदय-स्पन्दन में, रोदन-स्वन मे, कम्पन मे, गुण-बन्धन मे,- चुम्बन में, परिरम्भण मे,- वेदना अरुण लहराई, रतनारी करुणा छाई, हो गई चेतना के मिस ह्यि की वेदना-सगाई । हिचकी के युग-युग की जल-थल की यह आकुलता, विहवलता इतनी सारी, यह आतुरता, यह मगन लगन रतनारी, जगती की इतनी करुणा, यह शाश्वत व्यथा धनी-सी, ऊम्मिला-हृदय उट्ठी यह टीस मसोस सनी-सी, इस अचर-सचर जग भर की वेदना घुमड कर आई १ऊम्मिला बहू आँगन 'घन-राशि घुमड कर छाई ।