पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४०७

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चतुर्थ सर्ग आकुलता से 8 छिन दामिनियाँ, छिन गर्जन, छिन धाराएँ, छिन बादल, छिन उपल विपुल, छिन फुहियाँ, छिन उथल-पुथल, अति चचल, यो ही ऊम्मिला सलोनी नित बिता रही निज जीवन, पूरित है उनके जीवन के क्षण-क्षण, मन विकल, प्राण ये बेकल, यि व्याकुल, चित विरहाकुल, ऊम्मिला-वेदना अमिता, उमडी नयनो से ढुल-दुल । १०० चल देख, कल्पने, उनको सन्ध्या के मौन क्षणो मे, चुपके-चुपके नत हो जा उनके युग श्रीचरणो मे, बैठी है देवि सुमित्रा करके शुचि सन्ध्या-वदन, उमडी नि श्वास हठीली, घडका हिय का निस्पन्दन , अनबोली सी बैठी है पार्श्व में ऊम्मिला भोली, ज्यो निपट धीरता के ढिग, बैठी करुणा अनबोली !