पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४१७

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पचम सर्ग २५ जग सूनो, हिय रचि रह्यो, सजन, बिथा के रंग, मानस मडल मे छई, यह वेदना अनग । २६ मन-अम्बर मे कॅपि रही, विरह-वेदना-चग, अवधि-डोरि काटहु, पिया, चलहु मोहि लै सग । २७ सपने की खिरकीन तै कबहू तो प्राणेश, झाकि देखि जायो करो, अर्ध-चेतना देश । २८ जनम जनम की साधना के मम फल हृदयेश, भले गए तुम विजन, लै नव चेतन सन्देश । २६ जानि गई सहसा, सजन, यह बात सविशेष, मोहि मिले है एक सग, क्लेश और प्रेमेश । ३० सिहरि-सिहरि रहि जाति है, हृदय-वल्लरी दीन, नैक समाश्रय देहु, हे मेरे विटप नवीन । ४०३