पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४२२

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अम्मिला ५५ ? दरस-पिपासा जो मिटै तो यह कैसो नेह बरसाबहु प्रिय, द्वैत को रिमझिम-रिमभिम मेह । है अदेह कोक भज, हो सदेह सुकुमारि, चरण वन्दना करति हौ, हृदय निहारि-निहारि । ५७ जोहत-जोहत बाट, ये बीते दिवस अनेक, पिय मम हिय मे है रह्यो, यह बिछोह अतिरेक । रात अँधेर पाख की, दीपक-हीन कुटीर, आय सँजोवहु दीयरा, हियरा भयो अधीर । तैल हीन, रीती, इतं मम प्रदीप की सीप, उत सिगरे घर घरन मे, जगे संजोग प्रदीप । ६० कारो अम्बर अोडि के आवत कारी रात, वह छानी मानी कहत, अति अधियारी बात । ४०८