पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४२६

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आम्मला रार करत हिय बावरो, अपने ही सौ खीझ, बिना मोल किमि बिक गयो, वा श्रीमुख पै रीझ ? ८० नयनन ते बोलत गए तुम अनबोले बोल मौन अनी बह चुभि गई, यिहि टटोल-टटोल । प्रेम--फास अस्तित्व की, प्रेम--हिये की प्यास, प्रेम--प्रणोदन सजन को, प्रेम-- प्राण की आस । ८२ प्रेम-रज्जु, अस्तित्व---घट, पन घठ--नयन अधीर, पिया मिलन की भावना, कूप गहन गभीर । हो पनिहारिन घाट की, तव सजोग-सुख-नीर, हुलिस कलस भरिबे चली, लिए प्यास की पीर । लोचन-पनघट पै फँस्यौ, घट सनेह की डोर, उतरि गयो गहरो बहुत बिल्यो न नीर अथोर । ४१२