पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४२९

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पचम सर्ग लाज गई, कुल कान सब, विकी तिहारे सग, फैल परी, इत उत बगरि आकुल हृदय-उभग । ६८ मेरे या हिय की कसक छलकि उठी सब ठौर, सकल चराचर ते उठी चेतन सिसक-मरोर । 88 जगद्व्यापिनी मम बिथा भई, अहो, प्राणेश, मम कपन ते कॅपि उठ्यौ, सब जग को हिय-देश । क्लेश मिल्यौ, किवा मिल्यौ कपित नेह प्रसाद, व्यथा रूपिणी है गई विगत दिनन की याद । १०१ यह सयोग वियोग को अपरस्पर अवलम्ब, करि के या जग मे घटित, क्यो बैठे, हेरम्ब ? १०२ प्राण पिरीते, तुम बिना सूनो भयो दिगन्त, उदित होहु मन-गगन मे, भरहु प्रकाश अनत ।