पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४३१

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पंचम सर्ग रसरी' बाधो नेह की, नैन सैन के छोर, खीचि लेहु टूटी तरी, श्री चरणन की ओर । ११० पीतम, साधन हीन हौ, निस्साधन मम नाव, केवल नेह-निबाह को, अहै साधना-भाव । या विछोह के सिधु मे, केवल यह प्रतीति, सजन, निबाहोगे अवश, चिर पिरीत की रीति । ११२ एतो जिय विश्वास है, केवल एती आस, कबहूँ तो बहि जायगी तरी तिहारे पास । आशका को उठि रह्यो, झझानिल घनघोर, भीति-बीचि-विक्षोभ को घहर्यो घोर अथोर । यह विरहाम्बुधि तट रहित, अवधि-नीर गम्भीर, मास, वर्ष, दिन, छिन भए, चचल लहर अधीर । ४१७