पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४३४

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ऊम्मिला १२७ दिन के सँग दिन की बिथा जगी, ठगी, रस लीन, रवि-कर-नथिता-जाल मै, फँस्यो दीन मन-मीन । १२८ पछिन के सँग, प्रीति की चहकी चाह अतीत, हृदय मुरलिका तै उठ्यो, विरह-भैरवी गीत । १२६ कुसुम दलन तै कॅपि गिरे प्रोस-बिन्दु सुकुमार, मनो कपोलन तै ढरत, अश्रु-बिन्दु वै चार । लहरे दूर्वादल सिहरि, प्रात-समीरण पाय, ज्यो निश्वास समीर ते, सस्मृति-तृण लहराय । डरिया-बहिया द्रुमन की, डोलि उठी मुदमान भुज-सैनन तै होत ज्यो, पियतम को आह्वान । १३२ देखि 'उषा को बिहॅसिबो, प्राची को मृदु हास, विरहिनि इन दिन-छिनन में खीझत, होत उदास ।