पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४४४

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ऊम्मिला १८७ युग अनन्त लौ हहरिबो, : युग अनन्त लौ दाह, अथक जोहिबो बाट को, यह सनेह निबाह । साँचो प्रेम अकाल मम, प्रेम देश-गुण मुक्त, प्रेम निरन्तर, अनवरत, अथक प्रतीक्षा युक्त । १५६ सोरठा कसौ कसौटी नाथ, जेती मोको कसि सकौ, हृदय तिहारे हाथ, युग अनादि ते बिकि गयो । दृग रजन, मम नयन मे, अजन बनि अँजि जाहु, लोचन की फुहियान मे, कुछ छिन बैठि नहाहु । काजर की रेखा बने बसहु लोचनन बीच, बाँधहु अजन गुण बने नयन खजनन्हि खीच । १६२ कबहुँ ढरकि अँसुवान सँग, होउ अक आसीन, कबहुँ कपोलन पै ढरकि होउ सुरति रस-लीन । ४३०