पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४५७

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पचम सर्ग २६५ उठि आवत है हृदय तै, पुनि नवजीवन सॉस, आशा सुहरावति सम्हरि, दुमह वेदना फास । सोरठा डगर, हे मेरे प्रेमेश, सूनी मम जीवन मम ऐकान्तिक क्लेश, हरहु आय गहि बाँह मम । फ्ल्यौ मन-भर में अमल, हृदय-कमल रसपीन, तव चरणन में खै रह्यो यह उत्पल तल्लीन । २६८ सहज सहस-दल-कमल यह, प्रेम-नाल-सलग्न, लिए समर्पण-भावना, झूमि रह्यौ रसभग्न । नि स्पन्दन की पाँखुरी, अरुण नेह को रग, मदिर सुरित की गन्ध मधु, रेणु अमन्द उमग । २७० झूमि कमल नित करि रह्यौ, आशा-पवन-विलास, सतत श्वास-नि श्वास मिस करत समर्पण-रास ।