पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४५९

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पचम सर्ग २७७ हिय की कोमलता सकल, धुलि-धुलि बहत अधीर ढरकि नयन ते अर्ध्य-मिस, बहत हृदय की पीर । २७८ जग को मधु-सौन्दर्य सब, नयन-बिन्दु मे पाय, झलकि-झलकि, इत-उत बगरि, प्रकटि रह्यौ अकुलाय । २७३ वने सत्य-शिव-रूप तुम, हो सुन्दरना-रूप, मो बिनु, पिय, किमि होउगे तुम सम्पूर्ण अनूप ? २८० बिना सत्य-शिव के रहत सुन्दर सदा अपूर्ण, न्यो मुन्दर बिनु सत्य-शिव, किमि है है सपूर्ण ? २८१ जीवन को माधुर्य सब सुन्दरता को सार, वा दिन तै, तुम बिन भयो, जड अस्तित्व विकार । २८२ ? कहा सुघड सुकुमारता कहा मोद उल्लास ? तुम बिन सुन्दरता कहा ? कित विलास कित हास ?