पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४६९

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पचम सर्ग ३३७ सहिये, मव महिये विहॅमि, ननिक न कहिये वान, रहिये गुप-चुप मारि मन, यह नेह-मघात । होय, गजयोग, हठयोग ते, प्रेम-योग वड प्रेमेश्वर-प्रणिधान में, जात विचलता खोय । ३३६ ग्रामन, प्राणायाम, यम, नियम, धारणा, ध्यान, चिर ममाधि, सब कछु मिलत, रहत न जड अज्ञान । आप, अनचाहे, सब यम-नियम, मधत प्रापही चित्तवृत्ति को योगमय होत निरोध अमाप । ३४१ जा आसन मे जमि गए, प्रीति-वियोगी जीव, सोई आसन होत है सफल सुमिद्ध अतीत्र । ३४२ प्राण श्वास उच्छ्वासमय बनत चलित हिन्दोल, दुलरावन उल्लसित ह्व, पीतम नाम अमोल । ४५५