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पचम सर्ग जहाँ मौन को राज, जहँ वाणी की गति नॉहि, अलबेले पीतम चतुर, सतत बमन नेहि ठाँहि ऑखिन प्रॉखिन मे जहाँ, होत प्राण-पण-मोल, तहाँ कहहु, किमि वोलिए, निपट अधूरे बोल ? ४३६ प्रात्म-निवेदन मौनमय, हृदय-समर्पण मौन, मौन दान-प्रतिदान यह, हिय सघर्पण मोन । बजत सजन की मुरलिया, मौन-राग-स्वर साधि, उत्प्राणित हिय ते बहत, पूग्न प्रेम अनादि । ४३८ जहाँ मौन की पूर्णता, चहाँ मौन उपराम, तह शब्दोच्चारण लगत, निपट असस्कृत, बाम । ४३६ शब्द-समुद्र मम मॅझाइ के नोरव प्रमेश, पहुँचि गए वा पार, जहँ पूर्ण मौन को देश । ४७१