पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४८६

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अम्मिला चढि उमॉस की नाव, हौ पहुँचौगी वा पार, या वचनोदधि के परे, जहाँ मौन मय प्यार । सोरठा कबहुँ न करिए भग, अनबोली आराधना, जब सिहरत अंग-अग, तब मुखते का बोलिए ? ४४२ शब्द, दीन है कठ मे, अटकि-अटकि रहि जात, अति नीरव स्वर-हीनता, उठि आवत, अकुलात । ४४३ ध्वनि-शून्यता-प्रसार तह, पूरनता जहें होय, चहिय राखिबो आपुनो, नेह मरम सब गोय । ? जहाँ भरित चिर नेह, तहें कहाँ शब्द-व्यापार हिय-कम्पन हू थम्हत जहँ, तहँ किमि सरव विकार ? वायु-विकम्पन श्रवण-गत, अहै शब्द-ध्वनि-रूप, पै मन-इन्द्रिय के परे, राजत मौन अनूप । ४७२