पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४९२

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ऊम्मिला जीवन यह नव चेतना, अहै दरस की प्यास, याही ते उत्क्रमण को, यहाँ प्रवास प्रयास। ४७७ जा छिन तै वा एक के भए स्वरूप अनेक, प्रकटयो ताई समय तै, यह चेतना विवेक । ४७८ चेतनता प्रकटी भली, जीवन मिल्यो अनन्त, जीवन के सँग - सँग चली दरसन प्यास ज्वलन्त । ४७६ अवश गुणन ते बँधि रह्यो, वह निरगुनी महान, अगुन होइवे को पुन मचलि रह्यो गुणवान । ४८० पुन प्राप्ति निज रूप की, पुन पूर्ण विस्तार, याई सतत प्रयत्न ते, मचत हिये मै रार । ४८१ जीवन मे अरुझे अमित इच्छा, द्वेष, विकार, द्वन्द्व - विमोहन - भाव ये, काम, राग, अविचार । ४७८