पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/४९६

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ऊम्मिला पहिरत वेह कौन विधि, सीता बल्कल चीर ? सजन सम्हारत होइगे केहि बिधि पर्ण-कुटीर ? को त्रास, वानप, ऑबी प्रग्बर, शीत, उफ्लै अरु वन-वन को डोलिबो, तृण-कुटीर को वास । ५०२ 7 दक्षिण दिगि दृती, अरी, प्रो अटपटी बयार, अजहूँ धारण करि रही, हौ जीवन को भार । धनु धारे, तणीर कसि, करि आखेटक वेश, विचरत बेहै प्राण-धन, हरत विजन को बलेश । ५०४ वल्कल-पट सो अरुझि के, वन-झारिन के शूल, कहत होयगे सजन सो, आए कित पथ भूल ? ५०५ चढि ऊँचे गिरि-शिखिर पै, लै दृढ धनु की टेक, पीय निहारत होइगे, दूर, क्षितिज की रेख । ४८२