पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५०५

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पचम सर्ग ५५४ नन सेन तँ हूँ न कहुँ, छलकै कानर भाव, या त लोचन म सदा, भरिय अचचल चाव । ५५५ दिन दूनी, निशि चौगुनी पुनि याही अनुपात, बढे जु हिय की विकलता, नउ रहिये मुसकात । कबहुँ न कीजै सजन की, कहूँ सिकायत जाय, यो न ढिढोरा पीटिए, हिय-लघुता दरसाय । ५५७ रस-प्रतिदान निबाहिबौ, है यह उनको काम, अपनो एतो काम है, बिकि जैवौ वेदाम। ५५८ काऊ को यदि ठसक यह, कि हम बडे रस राय, हमे ठसक यह, भक्त हम, नि साधन, निरुपाय । ५५३ लेहु, चहै ठुकराहु, पिय, हिय तव चरणन पॉहि, ठकुर सुहाती क्यो कहौ ? चाटुकारिणी नाहि । ४६१