पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५०६

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ऊम्मिला ५६० दरस प्यास की आस बड, तडपावतु है प्रान, तऊ डगर ना छॉडिहौ, करिहो सतत पयान । तुम इतमो जनि देखियो, चढि उत्तग पहाड, या दिशि मे उमडी अहै, दृग-सरिता की बाढ । ५६२ पिय कहिही ना हिय-बिथा, अपनी धीरज खोय, सीखि गई हौ राखिबौ, बिथा हिये म गोय । पिय के दुसह वियोग मे, केहि बिधि निकसै प्रान ? स्मरण ध्यान के पाश मे, अटके रहत निदान । हिय, जिय, दृग उच्छ्वास में, पीतम रहे समाय, रोम-रोम मे पिय रमे, प्राण कहा ते जाय ? बलिहारी या नेह की, प्राण जान नहि देत, निशि दिन तडपावत रहत, कठिन परीक्षा लेत । ४६२