पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५०७

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पचम सर्ग छाडि प्राण यो संत में, पियहि न मिलिए धाय, प्रेम-नेम प्रतिपालिए, आजीबन मन लाय । ५६७ प्राण त्यागि देवी, अहे कछ न कठिनतर कर्म, जीवित रहि, महिबी विथा, यह प्रेम को मर्म । अमर प्रेम-रममत्त हाँ, प्रमी साधन योग, मृत्यु एक मदिरा अहै, पियत न नहीं लोग । 7 कहा वडाई मद पिय, भए शून्य, मदहाश जागरूक हदै साधिबो, प्रम योग निर्दोप । ५७० प्रेम वियोग मृत्यु को, नहि मागत वरदान, अमृत भक्ति अनुरक्ति जहँ, तह कैसो अवसान? सूत्रधार जहं प्रेम चिर, अमृत नटी, नट राज, मृत्यु यवनिका को तहाँ, कहाँ, कोन सो काज ? ४६३