पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५१३

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पचम सग ६०२ वह उत्साह अदम्य अति, उनकी वह ठकुरास, सद्यस्मृति सी अजहुँ वह, हियहि करत सोल्लास । तान, वह विवाह-मडप विशद, वे गुरुजन, वे आह, काल कब थिर रह्यो ? भई पुरानी बात । बडी पुरानी बात है, पै नित नई लखात, वाई दिन तो हृदय मे, भयो नेह-सघात ? ६०५ युग-युग को सम्बन्ध वह, वा दिन भयो नवीन, फिरि के जगि आई यहै, प्रीति-रीति प्राचीन । ६०६ वा दिन की उनकी गुनौ, कौन-कौन सी बात, उनकी तौ प्रति बात मे, दीखत मधु छलकात । ६०७ उन बातन को सुमिरि के, हिरदौ भरि-भरि जात, उन मधुमय घटिकान मे, हतौ न विधि उत्तपात । ४६९