पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ऊम्मिला ६२० वा दिन की इक बात तो, अजहुँ मोहि हुलसात, अजहूँ हौ हँसि लेतु हौ, सोचि-सोचि वह बात । ६२१ इतनी दृढता सो गह्यो, मो कर उन, करि प्यार, हौ विदेह-तनया, नतर, करि उठती सीत्कार । ६२२ पाणि गहन के समय के वे सब स्मरण-उमग, मन मे उठि करि देत है, हृदय आज हू भग । ६२३ वे दिन का जानौ कितै, सहसा गए पराय ? पछी के-से उडि गए अपनो नीड बिहाय । ६२४ वे दिन सुख सपने भय, उलटयो दैव - विधान, भयो जागरण स्वप्न, अरु, स्वप्न जागरण मान । सुख की स्वप्निल कल्पना, जागृत भई सशक, सुख को ध्रुव जागरण वह पर्यो स्वप्न-पर्य क । ५.२