पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पचम मर्ग अमिट नेह की लीक पै धरत-धरत ध्रुव पाय, निहचै इक दिन लेहुँगी अपने पियहि मनाय । ऊँची पै • ऊँची चढत जात प्रेम की बाट, चढि चलु, चढि चलु, विरहणी, खोले नैन कपाट । ६४० काल सान्त वामे लगे तीन काल के जोड, वह मम नित्य सनेह सो, किमि बद सकिह होड? ६४१ अवधि रहित, अन्तर रहित, अन्तर्हित, अन अन्त, अपलक, अमल, सनेह चिर, इति वदन्ति गुणवन्त । ६४२ बरस, मास, दिन, रात, पल, घटिका, निमिष, मुहूर्त, इनकी का गिनती, जहाँ भयो नेह-रस स्फूर्त । छूटि गयो दिन गिनन को मेरो विकल स्वभाव, जागि गयो है अब हिये, कछ -कछ, अविकल चाव।