पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५२

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राजकुमार अनार्य दलो में ऐसे टूट पडा था,- पूर्वकाल में इन्द्र वृत्र पर जैसे ट्ट पडा था । किन्तु बहन ऊम्मिले, अरी कुछ बात हो गई ऐसे- बैरी की कौटिल्यमयी कुछ घात हो गई ऐसे- नर शार्दूल नृपति को, नरवर राजपुत्र को, प्यारी, दुष्ट वैरियो ने छल-बल से बन्धन युक्त किया, री, इसे देख कर आर्य वीर दल सब हत-बुद्ध हुआ, री, प्रत्यचाएँ ठिठकी, धीमा-सा कुछ युद्ध हुआ, री। ७२ सुनती हो ऊम्मिले?"-' कहे जानो तुम, मैं सुनती हूँ, बहुत ध्यान से, जीजी, मै सारी बाते. गुनती हूँ, फिर क्या हुअा बतानो जल्दी, कहाँ गई सुकुमारी? आर्यो के, गान्धार देश की थी जो परम दुलारी?" ७३ "सुनो, बात जब यह पहुंची उस सुन्दर राज-भवन मे, लगी आग तब राजकुमारी के कोमल, मृदु तन में, तमक उठी वह, कस कर बॉधी उस ने अपनी वेणी, कटि बॉधी, तूणीर कसा, फिर बोली वह पिक बैनी,- ७४ 'आर्यो की बेटी हूँ, माँ, मै इस खल को समदूंगी, तेरा दूध पिया है मैने, अब रण मे जूझूगी । हूँ गान्धार देश की बाला, देखूगी इस शठ को, ठोकर मार चूर्ण कर दूंगी इसके कच्चे घट को ।