पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५२४

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ऊोम्मला डार-डार मे पिय रमे, लता-पत्र मे पीय, प्रकटि रहयो-तृण दलन मे पिय को भाव स्वकीय । अमिय फुई कलिका बने, नव बसन्त के मध्य सरसावत है सजन नित, चिर जीवन-रस सद्य । ६७० फूटी नवल प्रवालिका, बल्कल को हिय फारि, अथवा बिहॅसे मम सजन, जडता अमित बिदारि ? छलक्यौ पाटल कुसुम मे, अमल गुलाबी रंग, अथवा पिय के अधर ते छलकी हास्य-तरग ? ६७२ कलियन ने उन्मुक्त दै, खोले नन अधीर, या मिस प्रकटी सजन की, चिर विकास की पीर । ६७३ पुहुप पंखुरियन म रही, सुकुमारता समाय, मानहु झलकी पीय की, हिय-करुणा अकुलाय ।