पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५२९

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पचम सर्ग यह कैसी अद्वैत गति, जहा न आकुल भाव ? अहो, कौन यह नेह जहँ, चुवत न दृग ते चाव ? ६६६ का पूरनता मिलि गई ? हिय क्यो घरकत नाहि ? पै, कब कम्पन होत है लक्ष्मण के हिय मॉहि ? 9oo भयो ऊम्मिला को हृदय, लक्ष्मण हृदय अनूप, बनी ऊम्मिला लखन मय, लखन ऊमिला रूप, ७०१ यो जगती के लोग सब, गावहु मगल-गान, आज ऊम्मिला को भयो पृथग्देह-अवसान ? ७०२ अब तो ये कटि-कटि परे, देश काल के बन्ध, दुई मुई मरि-मरि मिटी, प्रह भावना अन्ध । ७०३ 'मेरे कर मे धनुष है, मेरे कर करवाल, भई जनकजा ऊम्मिला लक्ष्मण, दशरथ लाल । ७०४ वन विचरौ, कौतुक करौ, हरौ जनन के क्लेश, अवध भई अटवी गहन, रही न दुविवा लेश ।