पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५३३

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पष्ठ सर्ग ३ गहन विजन अज्ञान तिमिर हर, प्रखर दिवाकर सीताराम, भूमिभार हर, वन मगलकर, नित करुणाकर, सीताराम, वन विजयी, खरदूषण विजयी, लका विजयी, सीताराम, कोटि-कोटि विपदा विजयी, नित आत्म-जयी श्री सीताराम, पूर्ण हुई तपमयी साधना, बाधाएँ सव चूर्ण हुई, अवधि कट गई बनोवास की पितुराज्ञा सम्पूर्ण हुई । ४ चौदह बरस विलीन हुए वे, अचल मे, रहा काल कब सुस्थिर ? अस्थिर- इस गतिमय जग चचल म क्षण-क्षण भीषण-चक्र प्रवर्तन, क्षण-क्षण परिवर्तन - छाया, क्षण-क्षण कालोत्क्रमण निरन्तर, क्षण-क्षण पुर सरण - माया, तन-मन-जीवन, रोम-रोम में, है गति अनुगति अनस्थिरा, काल ? काल है महाशून्य मे, केवल गति का ज्ञान निरा । भूतकाल के ? ५१६