पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५३६

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ऊम्मिला पर- युग बीता, + है विश्वजयी रावण की लका, राम चरण नत हुई भली,- रही न पीडन-आशका, अनाचार की घडी टली; 'एक दुखद दु स्वप्न कल्पना- सम रावण का भूमि विमुक्त हुई , बन्धन से छूटी भूमि - सुता सीता, कुटिल रावणीया विभीषिका भूतकाल गर्भस्थ लका की निर्हादवती सब सेना अस्त-व्यस्त १० राम नहीं भौतिकतावादी, सत्य सन्ध श्रीराम सदा, नही भूमि-अर्जन लोभी वे, है अलिप्त निष्काम सदा, सदा लोक - कल्याण - भावना- प्रेरित पुण्य कर्म उनका, आत्यन्तिक सन्यास स्वार्थ का, बना स्वभाव इसीलिए लका नगरी मे, उल्लास महा, राम-करो से नृपति बिभीषण V का जब था अभिषेक वहाँ । धर्म उनका, फैला था ५२२