पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५३७

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षष्ठ सर्ग अरी सखी, बहुत दूर लका नगरी है, सुनो कल्पने, बहुत दूर पीछे श्रेता युग- है, सुन लो सहचरी सखी, पर, तुम चली चलो, करती हो क्या कालोदधि की शका, 'सेतु-बन्ध श्रीराम नाम स्मरण करो, पहुँचो लका, क्या पराजिता नही सत्-जिता, की निरखो शोभा, राजमार्ग की, प्रति गृह गृह की, छटा निहारो मन लोभा । का, लका आर्य राम की विजय नही यह, 'है प्रचार सत्-सस्कृति का, अत लक में नही रहा भय, विजय गर्व की दुष्कृति का, गृह-गृह मे उल्लास-हास है, नगर निवासी अमित सुखी, आर्य राम चालित सुराज्य मे, कैसे कोई रहे दुखी ? अाज विभीषण राजा होगे, हो अभिषिक्त राम कर से, देगे ये ही हाथ राज, है- जिसने जीता खर शर से। . ५२३