पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५३९

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षष्ठ सर्ग १५ स्वर्णगृहो के स्वर्ण-शिखर सब, चमक उठे प्रातला, करने लगे गवाक्ष वायु से- डोलित, किरणो से खेला, स्वर्ण-खचित सब द्वार देहली, रवि-किरणो मे चमक उठी, गृह - कपाट - मडित कर-कौशल, कृतियाँ छिनमें दमक उठी, प्रातर्वेला लका निखरी, लज्जित अरुणा - बाला - सी, अथवा राम - यज्ञ - वेदी की, लोहित रजित ज्वाला सी वे लका प्रमाण हेम कलश नाना विधि चित्रित, मधु जल भरित धरे द्वारे, के वैभव कौशल न्यार - न्यारे, नगर वासियो के कृतज्ञता- भरित हृदय के द्योतक वे, राम विभीपण क सत् प्रेरित- कार्यों के अनुमोदक वे, द्वार-द्वार पर दमक रही है मजुल कचन - कान्ति भली, चिर अशान्ति के बाद मिली है, लका को यह शान्ति भली। ५२५