पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५४०

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अम्मिला मुक्ता - हीरक गुम्फित तोरण, द्वार-द्वार पर फूल रहे, जग-मग ज्योति निहार नागरिक- गण, मन ही मन फूल रहे, झल-मल झल-मल झलक रहे है रवि - किरणो से वन्दनवार, हार धार कर सिहा रहे है लकपुरी के नन्दन-द्वार, निर्भयता गृह-गृह मे व्यापी, विस्तृत हुई शान्ति की बाट, आज पूर्ण उन्मुक्त हो गए लका-गढ के भीम कपाट । १८ कदली, नारि केल दल वेष्टित, कपाट-आधार, मरकत इव शोभित करते है, अपनी आभा का विस्तार, द्वार देहली पर अकित है, कुकुम, स्वस्तिक चिन्ह अनेक, भीतो पर है लिखित अनेको, भाव भरे सुन्दर, लघु लेख, कही लिखा है 'रामो जयति, भवतु चिरजीवी विभीषण' कही लिखा है 'भवतु सच्चिदानन्द स्वरूप इद मन प्रतिगृह के 7