पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५४१

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पप्ठ सर्ग तथा विस्तृत राजमार्ग जल-सिचित, जन - सकुलित, तरगित है, नाना वस्त्राभरण - कान्ति से, आलोकित, अति - रजित है, दोनो ओर सधन वृक्षो मे राजमार्ग आच्छादित उस पथ पर जनगण की गति अति सुखकर अबाधित है, जन-समूह कल्लोलित सर - सम- इधर - उधर हिलता - डुलता, चला जा रहा है लहरो सा, हॅस सब से मिलता-जुलता । २० लहरा रही गृहो पर सुन्दर मन मोहिनी ध्वजाएं ये, ऐसी लहरा रही कि सहसा सागर - वीचि लजाएं ये, अठखेलियाँ कर रही है ये चचल प्रात समीरण मे, कुछ मिसरी - सी घोल रही है ये अपने मन ही मन मे, ये फहराई थी उस दिन भी जब रावण का व्याह हुआ, • और आज भी फहराती है, जब रावण का दाह हुआ । ५२७