पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५४७

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पष्ठ सर्ग वन्सर, शिर पर जटाजूट है, अथवा- जग-रक्षण का भार बटा, अथवा कच कुडलियो के मिम जन - कृतज्ञता - भार चढा, अथवा श्यामल भूतकाल के गर्भस्थित चौदह जटाभार वन कर छाए है रामचन्द्र के मस्तक पर, एक-एक कुन्तल-अवली मे उलझ रही सौ-सौ स्मृतियाँ, प्रथिता ह प्रति जटा कुइली- म तप की अनेक कृतियाँ । जिस निद्रा मे विगत काल यह, लय हो कर भो जाता है,- जिम निद्रा की श्याम गली मे, उद्बोधन खो जाता जिस निद्रा में है अतीत का मद अति समोहन कारी, जिस निद्रा मे है विराम अति सस्मृति - हारी, वही नीद अँज रही नयन मे दशरथ नदन निर्गुण के, उस निद्रा के आधिपत्य से नयन उनीदे है उनके । सुखकारी,