पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५४८

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अम्मिला ३३ जिस जागृति मे उद्योद्भव है, जिस जागृति मे मति-गति है, जिस जागृति में वर्तमान की- निरलस, सजग कर्म-रति है, - जिस जागृति मे है भविष्य की आशा निर्माणो की, जिस जागृति मे सुस्पन्दन है, चलिता गति है प्राणो की, जिस जागृति में मोह विनाशक, बल है, भरा हुआ श्रीराम नयन मे | वही जागरण अविचल है। नव जागरूकता मय जिस के बल पर मानव जन-गण, शुभ भविष्य दर्शन करते,- जिस पर नित अवलम्बित हो कर नर हिय मे आशा भरते, वह सुदूर दर्शन - समर्थता- भरे राम निज नैनो में,- खडे हुए है अमित भाव ल अपने अकथित बैनो मे, चित्रलिखी - सी राजसभा सब, निहार - निहार रही, पल-पल मे अपलक शोभा पर अपना तन-मन वार रही।