पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५५२

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ऊम्मिला आज अपने मन की बात कहूँगा- आज नही होगा प्रवचन, केवल प्रकट रूप से होगा राम-मन का चिन्तन, एक-एक जीवन की घटना सम्मुख प्रा- जाती है, कई दुख सुख की सस्मृतियाँ वह सँग सँग ले आती है, चौदह वर्षों के जीवन का- पूर्ण चित्र - पट सम्मुख है, उसमे घटनामय जीवन के- अकित कई दुख-सुख है। ४२ राजन् राम, सीय-लक्ष्मण सह, बरसो पहले, निज घर से,- एक साध लेकर निकला था, अपने नगर उसी साध से प्रेरित हो कर, लक्ष्मण भी सँग-ऍग धाए, कुल-लक्ष्मी अम्मिला बहू को लक्ष्मण वही चौदह वर्षों के पहिले का अनुज वधू का वह श्रीमुख, वह विषाद मडित मुख आता, राम हृदय-दृग के सुखाकर से, छोड आए, सम्मुख ।