पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५५४

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म्मिला साधन की परिपक्वावस्था वन मे हमे मिली सुखदा, दक्षिण वन बन गया हमारे- लिए सकल उद्भव दुख-हा, इसीलिए यह दक्षिण मुझको प्रियतर है उत्तर से भी, इसीलिए अटवी है मुझको प्रियतर अवध नगर से भी, हुए विपिन मे हमको दर्शन पूर्ण विराट् विश्व भर के, हम सब के हो गए, न वन के रहे, न रच रहे घर के । वन मे सीता, राम, लखन ने अपना रूप जाना, सब को अपना करके हमने निज स्वरूप को पहचाना,

भूमि विजय, साम्राज्य-स्थापन,

यह न आर्य का ध्येय कभी, आर्य सभ्यता छोड चुकी है कब की सृतियाँ प्रेय सभी, जो अपने को जग भर मे, जग भर को अपने मे लेखे,- वह परपीडन की दुष्कृति में, क्यो न आत्म-पीडन देखे ? ५४०