पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५५७

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षष्ठ सर्ग उसकी यह यदि कोई जगदीश्वर है, तो- भी है लीला- कि वह असन् के द्वारा ही है प्रकटाता मति गति शीला, मत समझो कि कर सके हो तुम, असद्भाव का उच्चाटन, हो सकता है असत् उसी का जिमका है जग पर शासन, सत्य-असत्य तत्त्ववित् मो- का यह एक बखेडा है, यह पथ-जिम पर तुम दोनो हो, अतिशय टेढा - मेढा ५२ मत समझो रावण मरने से- रावणत्व अन्त हुआ, यो मरने से और अधिकतर विस्तृत मेरा पन्थ हुमा, रावणवाद चिरस्थायी वह है सृष्टि-तत्त्व लक्ष्मण, धर्म-भावना मे मन भूलो, पहचानो निजत्व, लक्ष्मण, आरो, मम निर्दिष्ट मार्ग पर-- चलो, भोग भोगो जग के, जग के त्राता मत कहलाओ, तुम यो अपने को ठग के ।