पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५५८

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ऊम्मिला जग-तारण? यह एक ढोग है, जग का त्राण असम्भव है, उसी तरह जैसे मृत शव को- जीवन-दान असम्भव जग अपनी गति से चलता है, वह गति है अज्ञेय, लखन, कर सकेगे उस- गति का स्वेच्छारूप चलन ? लखन, कदाचित् अदमनीय है कोई गति जग जालन मे, कहो राम से जाकर, तुम मत- प्रतिपालन म, कैसे राम पडो जगत् दुर्दमनीय चक्र है यह तो, यो ही चलता जाएगा, किसी तरह भी नही किसी के- वश मे यह जग आएगा, रावण ने भी खेले हे ये, सब जप-तप के खेल, लखन, पर, सच कहता हूँ पाई है. सव वाते बेमेल, लखन, नम अनुभव से तुम दोनो कुछ सीखो, यह हे अभिलाषा, किन्तु राम मन मे है जग के- त्राता होने की आशा । --