पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५६४

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ऊम्मिला दुग्धधार के दे कर रक्त हृदय का अपने, मिस जननी, करके प्राणो को न्यौछावर, शुद्ध प्यार के मिस, रमणी- सीच रही है प्रात्म-त्याग को----- धारा से जग-पादप को, सिखा रही है तप की विधियाँ, 'अहमिति' जग-उन्मादक को, क्षण-क्षण, आठो याम न हो, यदि । तप, तो यह जग कहाँ रहे ?! निमिष मात्र में महा प्रलय हो। सृष्टि-कथा फिर कौन कहे ? 1 नही निरीश्वर विश्व निखिल यह, चेतन-इच्छित, सेश्वर सकल लोक लोकान्तर गति का परिचालक सर्वेश्वर खनिज,जलज,उद्भिज, स्वदेज औ' कामज, थल, नभ चर प्राणी महाभूत, ये गन्ध - रूप - रस- परस - उपकरण, यह वाणी, इन सब की गति का सचालक ! सूत्रधार है अलख झलक, करता है सचालित जग को, वह नित जागृत, चिर अपलक । -