पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५६६

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कम्मिला लोग कहा करते है आर्थिक- सचय ही है आत्म विकास, अर्थ लाभ मूलक है, उनके-- मन से, जन का प्रगति-विलास, अर्थार्जन है उनके मत मे माप-दण्ड जन-सस्कृति का,- निरा द्रव्य-सचय ही है परि- चायक मानव धृति-कृति का, आर्थिक सचय ही है द्योतक ऋमिक ऐतिहासिक गति का उन के मत से अर्थ-शून्य-युग है परिचायक अवनति का । अर्थ-वाद ही प्रगति-चिह्न है, यो विचार कर, वे मन में, येन - केन - रूपेण अर्थ सचय करते क्षण-क्षण मे, न्याय और अन्याय तथा सत्- असत् विचार छोड कर के,- प्रचुर अर्थ-सचय करते है, जडता-वादी जी भर के, नहीं जानते वे कि अन्तत. ये विचार भ्रम मूलक है-- प्रगति- चिह्न ये नहीं, अपितु ये सत् - सस्कृति - उन्मूलक ५५२