पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५६७

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षष्ठ सर्ग . अर्थ प्रगति का चिह्न नहीं है, वह है प्रगति-नदी का फेन, वह तो यो ही उतराता है, होने को विलीन, बेचैन, जो कुछ ऊपर तैर रहा है- वह है नदी नही, राजन, क्या फेनिल विचार हो सकता-- है द्रुत नदी कही, राजन ? इस विकार-सचय से कैसे नव - प्रवाह - उत्पादन हो? निपट अज्ञता मे यो पड कर सस्कृति - साधन हो? ७२ अर्थ प्रगति का चिह्न ? अनोखी- सूझ अर्थवादी जन की, यह प्रवृत्ति परिचायक उन के चिन्तन, मनन - शून्य मन की, तनिक सुदूर विगत युग-युग का यदि कर ले अवलोकन के, तो मिट जायेगे क्षण भर मे उन के सकल प्रलोभन ये, उन ऋक्-साम गायको के ढिग था कौन सा अर्थ-सचय ? जो लोकोत्तर आध्यात्मिकता उन हिय प्रकटी नि सशय ?