पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५६८

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ऊम्मिला + ७३ यदि सस्कृति-गति लौकिक,आर्थिक- सचय के सँग-सँग चलती- तो वल्कल वसनो के युग. में कैसे ज्ञान-ज्योति जलती? द्रव्य-पुष्टि पर आधारित ही नही ज्ञान-मति गति-शीला, केवल भौतिकता- पजर नहीं निहित उस की लीला, मानवेतिहास की प्रगति का माप-दण्ड धन-धान्य नही, यह समाज सस्कृति जा सकती- नापी धन से कभी कही ? ७४ शुद्ध विचार - प्रौढता ही है भित्ति सभ्यता सस्कृति की, सदाचरण शीलता मात्र है, द्योतक सस्कृति, मति, धृति की, यो तो तन धारण करना ही जडता का अवलम्बन जड - चेतन - अवलम्ब परस्पर- यह ही जगत्-सक्रमण है, किन्तु सचेतन भाव नहीं है इस जडता से सीमा-बद्ध, है तथैव मानव - सस्कृति भी सचय - प्राबद्ध 1 नही अर्थ ५५४