पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५७०

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अम्मिला ? यह ! सदा एक ही वस्तु पूज्य है, वह है सत्य, असत्य नही, असत् अर्चना का इस जग में, हो सकता है तथ्य कही ? | तत्त्वहीन, सद्ज्ञान विमोहक, सदा अन्ध - अनुकरण- प्रभाव, सत्य रहित कैसे स्वीकृत हो-- स्वदश - पूजा - प्रस्ताव आचरणीय धर्म केवल वह शुद्ध सत्य अनुमोदित जो, कैसे ग्राह्य कहो हो सकता वह, है असत्-प्रणोदित जो ? ७८ 'कभी, समूचा-राष्ट्र दुष्टता- मय हो जाता है, राजन, कभी, देश का सत्य भाव सब, खो जाता है, राजन, जन-गण पागल हो उठते है, जग उठता है नाशक-भाव, निपट, विकट विक्षिप्त भावना कर देती है सत्य-दुराव, जन-समूह आतुर हो जाते, लगती प्रबल रक्त की प्यास, अपनो का ही शोणित पीकर, यो करते है जग का नाश ।