पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५७३

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षष्ठ सर्ग हुए सहायक, नृपति, आप मम, क्योकि पक्ष या मेरा सत्य, नहीं इसलिए कि था बडा बल- शाली दशरथराज अपत्य, जिस क्षण आप महायक मेरे, पाए थे बन कर, , राजन्, तब पलडे मे झूल रही थी, यह जय, इधर-उधर, राजन्, कोन जानता था कि अन्तन किसे वरेगी विजय-धी? कोन जानता था कि मुझे ही वरण करेगी विजय-श्री ? विभापण रूप 7 नहीं राजगिक प्रलोभनो से राम-सखा, उनने शुद्ध दृष्टि से केवल, शुभ स्वधर्म का लखा, राजन्, केसे करूं प्रशसा ? धन्य पापका अमल विवक द्विगुणित हुअा लोक मन-नि-प्रति मम विश्वास प्रापको देख , भौतिकता का? नहीं, सत्य का- था वह सुन्दर आकर्षण,- जिससे खिच कर किया आपने, पर कृपा-वारि-वर्षण।