पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५७५

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षष्ठ सर्ग ८७ हे सब जन-गण, आप त्यागिए, भौगोलिक, सकुचित विचार, भरिये हृदयो मे व्यापकता, करिये आप प्रात्म- विस्तार, अपने और पराये की वह- सीमा उल्लषित करके,- कर के नैनो को विम्फारित, दर्शन करिए जग भर के, लक-अवध-किष्किन्धा की यह लघुता आज हुई म्रियमाण, सब जन के श्रम से, यह देखो, हुआ बृहद् भारत - निर्माण । सब गति - सयुक्ता, आज हुए है द्वार-मुक्त दिशाएँ उन्मुक्ता, विश्व-मुक्ति-लालसा हुई है- क्रिया - शील, जन-गण के हृदयो की पाशा- सक्रिय, बन्धन -हीन हुई, हुए पराये भी अब अपने- भय-भावना विलीन हुई, आकुचित वृत्तियाँ हट रही रवि- कर - अपहृत तम-धन-सी, भेद-भावना आज मिट रही, दु स्वप्न - सस्मरण-सी । गत