पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/५७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ऊम्मिला ८६ खुलने दो कपाट अन्तर के, नया समीरण डुलने दो, ढुलने दो चिर जीवन-पासव आज नया रंग घुलने दो; साम्य-भाव-दोला सम गति से, इधर-उधर तुम डुलने दो, आज दृगो के दो पलडो मे, करुणा-मुक्ता तुलने दो, रह न जाय प्रतिबन्धक कोई- जग भर को मिल-जुलने दो, युग-युग की यह भेद कालिमा, इसे आज तुम धुलने दो। ६० यह देखो उत्तर-दक्षिण का दृढ गठ-बन्धन हुआ भला,- शुद्ध नेह की नीति हुई है, यह देखो, स्थापित, अचला, सुविचारो की बाट खुली है, लेन-देन का हाट खुला, हृदय-आयतन का, शतियो का यह आबद्ध कपाट खुला, जग में पवन-यान पर चढ-चढ़, विचरगे सद्भाव नये, फलेगे चढ उदधि-लहर पर धर्म-विचार अनश्वर